पहला नवरात्र आज, मां शैलपुत्री की पूजा

वैसे तो साल में दो बार नवरात्र आते है। एक तो चैत्र मास में और दूसरा आश्विन मास में होता है। इस बार 13 अक्टूबर से नवरात्र शुरू हो रहे है। जो कि 21 अक्टूबर तक चलेगें। 22 अक्टूबर को दशमी है। नवरात्र पूजन के प्रथम दिन मां शैलपुत्री जी का पूजन होता है। माँ शैलपुत्री दाहिने हाथ में त्रिशूल और बाएं हाथ में कमल का फूल लिए अपने वाहन वृषभ पर विराजमान होतीं हैं। इनका नाम शैलपुत्री हिमालय की पुत्री होने के कारण प़डा। दुर्गा पूजा में सबसे पहले कलश स्थापना किया जाता है। जिसके बिना आप की पूजा पूर्ण नही होती है। हिंदू धर्म के अनुसार कलश को मंगलमूर्ति गणेश का स्वरूप माना जाता है। इसलिए इसका पूजा सबसे पहले की जाती है। जानिए पहले दिन पूजी जाने वाली शैलपुत्री की पूजन विधि और कलश स्थापित करने के समय के बारें में।

शैलपुत्री पूजन विधि---
नवरात्रि में दुर्गा को मातृ शक्ति, करूणा की देवी मानकर पूजा करते है। इसलिए इनकी पूजा में सभी तीथोंü, नदियों, समुद्रों, नवग्रहों, दिक्पालों, दिशाओं, नगर देवता, ग्राम देवता सहित सभी योगिनियों को भी आमंत्रित किया जाता और कलश में उन्हें विराजने हेतु प्रार्थना और उनका आहवान किया जाता है। नवरात्र में पहले दिन मां दुर्गा के पहले स्वरूप शैलपुत्री की पूजा होती है। कलश स्थापना के लिए सबसे पहलें स्थापित की जानें वाली जगह को शुद्ध करें, लेकिन इस बात का ध्यान रहे कि कलश लोहे या स्टील का न हो।
यह मिट्टी, तांबा, चांदी, सोना या पीतल का होना चाहिए। इसके बाद कलश के ऊपर रोली से ऊं और स्वास्तिक का चिन्ह बनाएं। कलश में सप्तमृतिका यानि की सात प्रकार की मिट्टी, सुपारी, भेट पांच प्रकार के पल्लव से कलश को सुशोभित किया जाता है। इसके बाद इस कलश के नीचे सात प्रकार के अनाज और जौ बोये जाते हैं जिन्हें दशमी तिथि को काटा जाता है और इससे सभी देवी-देवता की पूजा होती है। इसके बाद इस कलश को पूर्व दिशा की ओर किसी सुरक्षित जगह में इस मंत्र के साथ स्थापित कर दें।

वन्दे वांछित लाभाय चन्द्रार्द्वकृतशेखराम्। वृषारूढ़ा शूलधरां यशस्विनीम्।।  इसके बाद सबसे पहले भगवान विष्णु का नाम लेकर अपने ऊपर जल छि़डके और फिर आचमन आदि करके ऊं भूम्यै नम: कहते हुए घरती को स्पर्श करें।
इसके बाद गणेश को याद करके दक्षिण-पूर्व की दिशा की ओर घी का दीपक जलातें हुए इस मंत्र को पढ़े- ऊं दीपो ज्योति: परब्रह्म दीपो ज्योतिर्जनार्नद:। दीपो हरतु मे पापं पूजा दीपनमोस्तु ते।

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