बजरंग बली की व्रत विधि और कथा

मंगलवार का दिन बजरंगबली का दिन होता है। इस दिन पवनपुत्र हनुमान जल्दी प्रसन्न हो जाते हैं। इस दिन व्रत का खास विधान है और इस दिन व्रत करने से बेडापार हो जाता है। इन दिन व्रत करने से मंगल ग्रह भी शांत होता है।

मंगलवार व्रत विधि -
विधि-सर्व सुख, रक्त विकार, राज्य सम्मान तथा पुत्र की प्राप्त के लिये मंगलवार का व्रत उत्तम है। इस व्रत में गेहू और गु़ड का ही भोजन करना चाहिये। भोजन दिन रात में एक बार ही ग्रहण करना ठीक है । व्रत 21 सप्ताह तक करें। मंगलवार के व्रत से मनुष्य के समस्त दोष नष्ट हो जाते है। व्रत के पूजन के समय लाल पुष्पों को चढ़ावें और लाल वस्त्र धारण करें। अन्त में हनुमान जी की पूजा करनी चाहिये। तथा मंगलवार की कथा सुननी चाहिये।

मंगलवार के व्रत के दिन सात्विक विचार का रहना आवश्यक है। इस व्रत को भूत-प्रेतादि बाधाओं से मुक्ति के लिये भी किया जाता है। और व्रत वाले दिन व्रत की कथा अवश्य सुननी चाहिए। इस व्रत वाले दिन कभी भी नमक का प्रयोग नहीं करना चाहिए। मंगलवार का व्रत भगवान मंगल और पवनपुत्र हनुमानजी को प्रसन्न करने के लिये इस व्रत को किया जाता है। इस व्रत को करने से मंगलग्रह की शान्ति होती है। इस व्रत को करने से पहले व्यक्ति को एक दिन पहले ही इसके लिये मानसिक रूप से स्वयं को तैयार कर लेना चाहिए। और व्रत वाले दिन उसे सूर्योदय से पहले उठना चाहिए।

प्रात: काल में नित्यक्रियाओं से निवृ्त होकर उसे स्त्रान आदि क्रियाएं कर लेनी चाहिए। उसके बाद पूरे घर में गंगा जल या शुद्ध जल छिडकर उसे शुद्ध कर लेना चाहिए। व्रत वाले दिन व्यक्ति को लाल रंग के वस्त्र धारण करने चाहिए। घर की ईशान कोण की दिशा में किसी एकांत स्थान पर हनुमानजी की मूर्ति या चित्र स्थापित करना चाहिए। पूजन स्थान पर चार बत्तियों का दिपक जलाया जाता है। और व्रत का संकल्प लिया जाता है। इसके बाद लाल गंध, पुष्प, अक्षत आदि से विधिवत हनुमानजी की पूजा करनी चाहिए।

मंगलवार व्रत की कथा---
प्राचीन समय में ऋषिनगर में केशवदत्त ब्राह्मण अपनी पत्नी अंजलि के साथ रहता था। केशवदत्त को धन-संपत्ति की कोई कमी नहीं थी। सभी लोग केशवदत्त का सम्मान करते थे, लेकिन कोई संतान नहीं होने के कारण केशवदत्त बहुत चिंतित रहा करता था। पुत्र-प्राप्ति की इच्छा से दोनों पति-पत्नी प्रत्येक मंगलवार को मंदिर में जाकर हनुमानजी की पूजा करते थे। विधिवत मंगलवार का व्रत करते हुए उनलोगों को कई वर्ष बीत गए, पर उन्हें संतान की प्राप्त नहीं हुई।

केशवदत्त बहुत निराश हो गए, लेकिन उन्होंने व्रत करना नहीं छो़डा। कुछ दिनों के पश्चात् केशवदत्त पवनपुत्र हनुमानजी की सेवा करने के लिए अपना घर-बाड छोड जंगल चला गया और उसकी धर्मपत्नी अंजलि घर में ही रहकर मंगलवार का व्रत करने लगी। इस प्रकार से दोनों पति-पत्नी पुत्र-प्राप्ति की इच्छा से मंगलवार का विधिवत व्रत करने लगे। एक दिन अंजलि ने मंगलवार को व्रत रखा लेकिन किसी कारणवश उस दिन वह हनुमानजी को भोग नहीं लगा सकी और सूर्यास्त के बाद भूखी ही सो गई।

तब उसने अगले मंगलवार को हनुमानजी को भोग लगाये बिना भोजन नहीं करने का प्रण कर लिया। छ: दिन तक वह भूखी-प्यासी रही। सातवें दिन मंगलवार को अंजलि ने हनुमानजी की विधिवत रूप से पूजा-अर्चना की, लेकिन तभी भूख-प्यास के कारण वह बेहोश हो गई। अंजलि की इस भक्ति को देखकर हनुमानजी प्रसन्न हो गए और उसे स्वप्न देते हुए कहा- उठो पुत्री, मैं तुम्हारी पूजा से प्रसन्न हूं और तुम्हें सुन्दर और सुयोग्य पुत्र होने का वर देता हूं। यह कहकर पवनपुत्र अंतर्धान हो गए। तब तुरंत ही अंजलि ने उठकर हनुमानजी को भोग लगाया और स्वयं भी भोजन किया।

हनुमानजी की अनुकम्पा से कुछ महीनों के बाद अंजलि ने एक सुन्दर बालक को जन्म दिया। मंगलवार को जन्म लेने के कारण उस बच्चे का नाम मंगलप्रसाद रखा गया। कुछ दिनों के बाद केशवदत्त भी घर लौट आया। उसने मंगल को देखा तो अंजलि से पूछा- यह सुन्दर बच्चा किसका है। अंजलि ने खुश होते हुए हनुमानजी के दर्शन देने और पुत्र प्राप्त होने का वरदान देने की सारी कथा सुना दी, लेकिन केशवदत्त को उसकी बातों पर विश्वास नहीं हुआ। उसके मन में यह कलुषित विचार आ गया कि अंजलि ने उसके साथ विश्वासघात किया है और अपने पापों को छिपाने के लिए झूठ बोल रही है। केशवदत्त ने उस बच्चे को मार डालने की योजना बनाई।

एक दिन केशवदत्त स्त्रान करने के लिए कुएं पर गया, मंगल भी उसके साथ था। केशवदत्त ने मौका देखकर मंगल को कुएं में फेंक दिया और घर आकर बहाना बना दिया कि मंगल तो कुएं पर मेरे पास पहुंचा ही नहीं। केशवदत्त के इतने कहने के ठीक बाद मंगल दौडता हुआ घर लौट आया। केशवदत्त मंगल को देखकर बुरी तरह हैरान हो उठा। उसी रात हनुमानजी ने केशवदत्त को स्वप्न में दर्शन देते हुए कहा- तुम दोनों के मंगलवार के व्रत करने से प्रसन्न होकर पुत्रजन्म का वर मैंने प्रदान किया था, फिर तुम अपनी पत्नी को कुलटा क्यों समझते हो। उसी समय केशवदत्त ने अंजलि को जगाकर उससे क्षमा मांगते हुए स्वप्न में हनुमानजी के दर्शन देने की सारी कहानी सुनाई। केशवदत्त ने अपने बेटे को ह्रदय से लगाकर बहुत प्यार किया। उस दिन के बाद सभी आनंदपूर्वक रहने लगे।

मंगलवार का विधिवत व्रत करने से केशवदत्त और उनके परिवार के सभी कष्ट दूर हो गए। इस तरह जो स्त्री-पुरूष विधिवत रूप से मंगलवार के दिन व्रत रखते हैं और व्रतकथा सुनते हैं, अंजनिपुत्र हनुमानजी उनके सभी कष्टों को दूर करते हुए उनके घर में धन-संपत्ति का भण्डार भर देते हैं और शरीर के सभी रक्त विकार के रोग भी नष्ट हो जाते हैं।

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