आश्विन मास की पूर्णिमा का व्रत, विधि और महत्व

शारदीय नवरात्र के बाद अब सोमवार 26 अक्टूबर को आश्विन मास की पूर्णिमा है। इस पूर्णिका का हिन्दू शास्त्रों में विशेष महत्व माना जाता है। इस दिन देवी लक्ष्मी जी की पूजा करने से धन व समृद्धि आती है। आश्विन मास की इस पूर्णिमा को कोजागरी व्रत रखा जाता है। इस दिन विशेष रूप से देवी लक्ष्मी की पूजा करने का विधान है। यह व्रत लक्ष्मीजी को प्रसन्न करने वाला माना जाता है। इस दिन मां लक्ष्मी जी की पूरे विधि विधान से जो उनकी पूजा करता है और व्रत रखता है तथा उनकी कथा सुनता है उस पर मां लक्ष्मी अवश्य कृपा करती हैं।

ऎसे करें व्रत होगी मां लक्ष्मी की कृपा---
नारद पुराण के अनुसार आश्विन मास की पूर्णिमा को प्रात: स्त्रान कर उपवास रखना चाहिए। इस दिन पीतल, चांदी, तांबे या सोने से बनी लक्ष्मी प्रतिमा को कपडे से ढंककर विभिन्न विधियों द्वारा मां लक्ष्मी की पूजा करनी चाहिए। इसके पpात रात्रि को चंद्र उदय होने पर घी के 100 दीपक जलाने चाहिए। दूध से बनी हुई खीर को बर्तन में रखकर चांदनी रात में रख देना चाहिए। कुछ समय बाद चांद की रोशनी में रखी हुई खीर का देवी लक्ष्मी को भोग लगाकर उसमें से ही ब्रा±मणों को प्रसादस्वरूप दान देना चाहिए। अगले दिन माता लक्ष्मी की पूजा करनी चाहिए और व्रत का पारणा करना चाहिए।

कोजागरी व्रत कथा ---
इस दिन रात के समय जागरण या पूजा करना चाहिए, क्योंकि कोजागर या कोजागरी व्रत में एक प्रचलित कथा है कि इस दिन माता लक्ष्मी रात के समय भ्रमण कर यह देखती हैं कि कौन जाग रहा है। जो जागता है उसके घर में मां अवश्य आती हैं।

कोजागरी व्रत फल ----
ऎसा माना जाता है कि पूर्णिमा को किए जाने वाला कोजागरी व्रत लक्ष्मीजी को अतिप्रिय हैं इसलिए इस व्रत का श्रद्धापूर्ण पालन करने से लक्ष्मीजी अति प्रसन्न हो जाती हैं और धन व समृद्धि का आशीष देती हैं। इसके अलावा इस व्रत की महिमा से मृत्यु के पpात व्रती सिद्धत्व को प्राप्त होता है।

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