इस धातु का पहनें कडा, बुरे दिन भी अच्छे में बदलेंगे

धार्मिक ग्रंथों के अनुसार आभूषण भी ग्रहों को अनुकूल बनाने में खासी भूमिका निभा सकते हैं। आभूषण रत्न जडि़त हो तो ग्रह पीड़ा, नजर और दु:स्वप्न का नाश होता है। जो महिलाएं केवल स्वर्णाभूषण पहनती हैं, उनमें गर्म धारा अधिक होती है। वे स्थाई रूप से रोगिणी हो सकती हैं। केवल सोना पहनने से पित्त की अधिकता होगी। यदि कोई भी जातक खास धातु का कडा धारण करता है तो ग्रह अनुकूल होने लगते हैं। ग्रहों के अनुसार कहां-कौन सी धातु का आभूषण रहेगा उचित यह जानना बेहद जरूरी है-

स्वर्ण
के आभूषणों की तासीर गर्म और चांदी की शीतल है। सूर्य-सोने और तांबे पर, शुक्र व चंद्रमा-चांदी, मंगल-तांबे, गुरु-सोने और शनि व राहू-लोहे पर आधिपत्य रखते हैं। ज्योतिष में सूर्य-ह्रदय, मुंह, गला व सिर का, चंद्रमा-वक्ष, पेट, मंगल-भुजा और शनि-पैरों का प्रतिनिधित्व करता है। आयुर्वेद के अनुसार मनुष्य का सिर ठंडा और पैर गर्म रहने चाहिए। इसलिए सिर पर सोना और पैरों में चांदी के आभूषण ही धारण करने चाहिएं। इससे सिर से उत्पन्न ऊर्जा पैरों में और चांदी से उत्पन्न ठंडक सिर में जाएगी। इससे सिर ठंडा व पैर गर्म रहेंगे।

सिर
में चांदी के व पैरों में सोने के आभूषण नहीं पहनने चाहिएं। इससे स्त्रियां अवसाद, पागलपन या अन्य रोगों की शिकार बन सकती हैं। पैरों में सोने की पायल नहीं पहननी चाहिए, चांदी की पायल पहनने से पीठ, एड़ी व घुटनों के दर्द, रक्तशुद्धि, मूत्ररोग, हिस्टीरिया आदि रोगों से राहत मिलती है। सिर और पांव दोनों में स्वर्णाभूषण पहनने से मस्तिष्क और पैरों में समान गर्म ऊर्जा प्रवाहित होगी, जिससे जातक रोगग्रस्त हो सकता है। यही नहीं आभूषणों में अन्य धातु के टांके से भी धारा गड़बड़ा जाती है लेकिन टांके में अन्य धातु का मेल आवश्यक है लेकिन इसमें जिस धातु का गहना है, उसका मिश्रण अधिक हो तो रोग रहित होंगे।

ऊर्जा प्रवाह की गड़बड़ में परिणाम विपरीत होता है। यदि सोने में चांदी की मिलावट हो तो गर्म व ठंडे का मिश्रण से अन्य प्रकार की धारा बन सकती है। अत: सोने के पतरे का खोल बनवा कर भीतर चांदी, या जस्ते की धातुएं भरवा कर कड़े, हंसली आदि आभूषण से रोग पैदा होते हैं। ऊर्जा का प्रवाह हमेशा किनारों से प्रवेश होता है। अत: मस्तिष्क के दोनों भागों को ऊर्जा प्रभाव से प्रभावशाली बनाने के लिए नाक और कान में सोना पहनना चाहिए।

तांबे की धातु पहनने से मिलता है यश और सम्मान
ज्योतिष के अनुसार गुरु कान और सोने का प्रतिनिधित्व करता है। अत: सोने की बालियां या झुमके पहनने से स्त्रियों में स्त्री रोग, मासिक धर्म संबंधी अनियमितता, कान के रोग, हिस्टीरिया, डिप्रेशन में लाभ होता है। जो लोग स्वयं को अन्य लोगों से कमतर महसूस करते हों या फिर उनमें हीन भावना घर कर चुकी हो, ऐसे में उन्हें तर्जनी उंगली में सोने का आभूषण धारण करना चाहिए। ज्योतिष में गुरु को नेतृत्व क्षमता कारक ग्रह माना गया है और इनकी धातु भी सोना है। ऐसी स्थिति में स्वर्ण उन्हें अनुकूल परिणाम देता है। रोग निवारण में धातु की भूमिका खास धातु के बनाए आभूषण रोग निवारण में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं। जिन जातकों के कमर या पेट के रोग हों, वे कमर में सोने, तांबे या चांदी की कनकती धारण करें, लाभ मिलता है। धातु ग्रह-क्लेश को भी नियंत्रित कर सकता है। जो जातक दाम्पत्य कलह के शिकार हों, उन्हें चांदी की चेन या अंगूठी धारण करनी चाहिए। साथ ही जो व्यक्ति मानसिक अशांति के कारण अवसाद में हों वे चांदी, तांबा, स्वर्ण तातु से निर्मित छल्ला पहनें तो लाभ मिलेगा। यदि जातक चंद्र पीडित है या मानसिक कष्ट, कफ, फेफड़े का रोग, तन से परेशान हो तो नाक में चांदी का छल्ला डालना लाभ देता है।

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