मंदिर या पूजा स्थल पर दीपक जलाते समय रखें इस बात का ध्यान

पूजा-पाठ, मंत्र, जप, यज्ञ, होम, दान, जड़ी बूटी या रत्न धारण करने जैसे उपाय जीवन को सुखी, संपन्न, कष्ट रहित बनाने के लिए किये जाते हैं, परंतु कई बार इतने सब उपाय करने के बावजूद अपेक्षित फल प्राप्त नहीं होता है। ऐसी स्थिति में दोष नसीब या उपाय बताने वाले ज्योतिषी पर मढ़ दिया जाता है। लेकिन इसके पीछे कहीं न कहीं हम और हमारे प्रयास अथवा जानकारी का अभाव ही उत्तरदायी होते हैं।

पूजा-पाठ, मंत्र जप या अन्य धार्मिक आयोजन के दौरान शराब, मांसाहार या नशीले पदार्थों का सेवन करना, अश्लील हंसी-मजाक या अभद्र व्यवहार करना, किसी को अपमानित करना तथा मन में अपवित्र भावना बनाये रखना भी उचित नहीं है ,इसके कारण की गयी साधना व्यर्थ हो जाती है। इसलिए सदैव पवित्र और शुद्ध अन्तःकरण से सात्विक जीवन जीते हुए पूजा-पाठ करना शुभ फल दायी होता है।

घर या व्यापारिक स्थल में वास्तु दोष होने अथवा गलत दिशा में पूजा स्थल होने के कारण भी की गयी पूजा पाठ या उपाय कोई लाभ नहीं देते हैं। इसलिए अगर वास्तु दोष है तो पहले उसका उपचार कराना चाहिए और पूजा स्थल को सही दिशा में शिफ्ट कर देना चाहिए।

मंदिर या पूजा स्थल पर दीपक जलाते समय भी इस बात का ध्यान रखना चाहिए की दीपक में शुद्ध घी या शुद्ध तिल का तेल अथवा सरसों का तेल और कपास से बानी बाती का ही उपयोग किया जाए। दीपक मिटटी या पीतल अथवा तांबे से बनी धातु का हो। लोहे से निर्मित दीपक का प्रयोग नहीं करना चाहिए अन्यथा शुभ परिणाम नहीं मिलेंगे।

पूजा स्थल को नियमित रूप से साफ़ न करना अथवा वहां रखे बासी पुष्प, पुष्प माला, पत्ते, प्रसाद आदि को अगले दिन न हटाना भी अपेक्षित फल नहीं देता है। इसलिए भगवान हर दिन नयी पूजा सामग्री का ही उपयोग करना चाहिए।

पूजा-पाठ एवं मंत्र जप करते समय अपवित्र और अशुद्ध दशा में होना तथा सही उच्चारण के साथ मंत्रों का जप न करना भी अपेक्षित फल देने में बाधा उत्पन्न करता है। पूजा-पाठ के लिए एकांत स्थल होने के साथ-साथ पूर्व, उत्तर या उत्तर-पूर्व दिशा में मुख होना चाहिए तथा ऊन अथवा धुले हुए सूती या रेशमी वस्त्र के आसान पर बैठकर ही मंत्र जप करना चाहिए। पलंग पर, खड़े होकर या चलते-फिरते अथवा जल्दबाजी में की गयी पूजा निष्फल ही रहती है और उसका कोई लाभ जातक को नहीं मिलता है।

घर-परिवार या रिश्तेदारी में किसी नए सदस्य के जन्म लेने अथवा मृत्यु होने पर सूतक या पातक लग जाते हैं। इस दशा में पूजा-पाठ करना निषिद्ध होता है। इसका कारण यह है कि सूतक या पातक अपवित्रता की स्थिति मानी जाती है। सूतक या पातक की समय अवधि पूरी होने और शुद्धिकरण होने के बाद ही धार्मिक कार्य करने चाहिए।

सास-बहू की टेंशन का कम करने के वास्तु टिप्स
केवल 3 सिक्के चमका सकते हैं किस्मत
 2017 और आपका भविष्य  

Home I About Us I Contact I Privacy Policy I Terms & Condition I Disclaimer I Site Map
Copyright © 2024 I Khaskhabar.com Group, All Rights Reserved I Our Team